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KVK - II, Sitapur demondtrated safe handling method of pesticides and their application

25th November, 2016, Sitapur, Uttar radish

Pesticides are toxic to both pests and humans. However, they need not be hazardous to humans and non-target animal species if suitable precautions are taken. In Maholi block of Sitapur district, Uttar Pradesh, farmers using heavy dose of chemical pesticides and fertilizers in injudicious manner following the above ground symptoms while growing tomato. A training-cum-demonstration programme organized by Krishi Vigyan Kendra-II, Katia, at village Niyazpur, Block Maholi, Sitapur, Uttar Pradesh on safe handling method of pesticides and their application method to educate and aware farmers more and more.

Dr. Mukesh Sehgal, Principal Scientist, ICAR-NCIPM, New Delhi participated in the program and urged farmers about two important steps i.e read and understand the product label about the active ingredient, how to mix and apply the product, when and where to apply the product, how to store and dispose of the product, as well as safety and environmental precautions and first aid instructions. He suggest that, spray workers should wear overalls or shirts with long sleeves and trousers, a broad-brimmed hat, a turban or other headgear and sturdy shoes or boots. The mouth and nose should be covered with a simple device such as a disposable paper mask, a surgical-type disposable or washable mask.

Dr. Anand Singh, Sr-Scientist-cum-Head, KVK-II, Sitapur, while explaining about preventive measure suggest that in case of accident; Rinse the eyes with large quantities of clean water for at least five minutes. Remove contaminated clothing from the patient and remove the patient from the contaminated area. Patients requiring further medical treatment should be referred to the nearest medical facility.

Dr. D. S. Srivastava, Scientist, Plant Protection focused on equipment used by farmers that it should be regularly cleaned and maintained to prevent leaks. People who work with pesticides should receive proper training in their safe use. The discharge from the sprayer should be directed away from the body. Leaking equipment should be repaired and the skin should be washed after any accidental contamination.

In this programme total 64 farmers were participated and 20 Safe wearing kits distributed to the victims who are at high risk.


मखाना उत्पादन तकनीक का प्रसार, मखाना उत्पादन के लिये सीतापुर जलवायु उपयुक्त, मखाना उत्पादन कर अधिक लाभ

कृषि विज्ञान केन्द्र, कटिया द्वारा बिसवाॅ, विकासखण्ड के बजेहरा गाॅव में मखाना उत्पादन तकनीक पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कृषि विज्ञान केन्द्र के अध्यक्ष व वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ आनन्द सिंह ने कृषकों को बताया कि सीतापुर क्षेत्र में तालाब व झील काफी संख्या में हैं, इन तालाबों व झीलों में मखाना उत्पादन कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते है। मखाना एक व्यावसायिक फसल के साथ जल संरक्षण एवं जल की गुणवत्ता में सुधार करता है।

देश में मखाना का उत्पादन मुख्य रूप से उत्तरी बिहार के कुछ जिलों में बहुतायत रूप में होेता है। मौसम एवं जल उपलब्धता के आधार पर सीतापुर भी मखाना के लिये उपयुक्त क्षेत्र है।

कृषि प्रसार वैज्ञानिक ने बताया की मखाने की खेती की विशेषता है कि इसका लागत कम है। इसकी खेती के लिये तालाब में 2 से 2 1/2 फिट तक पानी रहे। मखाने की खेती दिसम्बर से जुलाई माह तक ही होती है।

पशुपालन वैज्ञानिक डाॅ आनन्द सिंह ने बताया कि मखाना में कम वसा होने के कारण सुपाच्य होता है, श्वास व धमनी के रोगों तथा पाचन एवं प्रजनन सम्बन्धी शिकायतें दूर करने में उपयोगी हैं।

डाॅ दयाशंकर श्रीवास्तव ने बताया कि मखाना में कीट व रोग व्याधि का प्रकोप कम होता है, जहाॅ पहले मखाना सालभर में एक बार खेती होती थी अब नई तकनीकों और नये बीजों के आने से सालभर में दो बार ऊपज ले रहे है।

विश्व का 80-90 प्रतिशत तक मखाना का उत्पादन बिहार में ही होता है, विदेशी मुद्रा कमाना वाला यह एक अच्छा उत्पाद है। कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा मखाना उत्पादन तकनीक पर बजेहरा ग्राम में प्रदर्शन आयोजित किया, जिसके तहत श्री सुरेश कश्यप व दो अन्य किसानों के यहाॅ प्रदर्शन लगाया। बजेहरा गाॅव में ही सुरेश के मखाना फसल का सफलतापूर्वक होना व फूल निकलना एवं फल बनना इस बात का सूचक है कि सीतापुर में मखाना की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है तथा अन्य किसी जल आधारित उद्यम से अधिक लाभ/आमंदनी देनेवाला है। इस मौके पर 22 कृषकों ने कार्यक्रम में भागीदारी|



World Soil Day Celebration

05 December 2016, Sitapur

KVK-II, Sitapur celebrated World Soil Day at Village- Niyazpur, of Block- Maholi. Farmers were awaken on importance of Soil testing and Soil Health Card. The farmers actively participated in the programme and get their report about soil health in the form of Soil Health Card. A total 81 farmers participated in the programme and Soil Health Card distributed to 46 Farmers.


मृदा जाँच / बीज उपचार अभियान

किसी भी फसल के उत्पादन के लिए बीज एक महंगा आदान होता है फसल उत्पादन की कुल लागत का लगभग २०-३० प्रतिशत भाग अकेले बीज पर ही खर्च हो जाता है अतः स्वस्थ फसल प्राप्त करने के लिए हमें बीजों को बिमारियों से दूर रखना चाहिए जिसके लिए हमें फसलों को बोने से पहले बीजोपचार करना चाहिए यह बात कृषि विज्ञानं केन्द्र, कटिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह ने जनपद के बिसवां विकाश खण्ड के नकारा व गुरेरा ग्राम में केन्द्र द्वारा आयोजित मृदा जाँच व बीज शोधन अभियान में कहा केन्द्र के प्रसार वैज्ञानिक शैलेन्द्र सिंह ने बताया की बीज उपचार करते समय कुछ बातो का ध्यान रखना चाहिए जैसे कि उपचारित बीज को छाया में सुखाने के तुरंत बाद बुवाई की जानी चाहिए, उपचारित बीज को ज्यादा देर ना रखे अन्यथा बीज खराब हो जाएगा, बीज उपचार करने से पहले फंजीसाइड लेवल को सावधानीपूर्वक पढ़े तथा दिशा निर्देशों का पालन करें, यदि बोने के बाद उपचारित बीज की मात्रा बच जाए तो उसे न तो जानवरों को खिलाना चाहिए न ही खुद खाना चाहिए।

केन्द्र के कार्यक्रम सहायक अथवा मृदा विशेषज्ञ सचिन प्रताप तोमर ने मृदा जाँच के ऊपर विशेष जोर देते हुए कहा कि हम अपनी खेती कि लागत को अनावश्यक रूप से बढ़ाते जा रहे है जब हमे पता ही नहीं रहता कि हमारी मिटटी में किस तत्व कि कमी है तो हम रासायनिक खादों को किस आधार पे देते है और यदि किसान फसल बुवाई से पूर्व मिटटी कि जाँच करा ले तो उसे पता होता है कि उसे किस तत्व को कितना देना है इसलिए मिटटी कि जाँच अवश्य कराएं। केन्द्र के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह ने पशु बीमा, गर्मी में पशुओं कि देखभाल कैसे करें, साल भर चारा उत्तपादन आदि विषयों पे विस्तार से चर्चा किया। पादप रक्षा वैज्ञानिक डॉ दया शंकर ने बीज शोधन से लाभ के बारे चर्चा करते हुए कहा कि बीज शोधन से फसल की बीज एवं मृदा जनित रोगों एवं किटों से बचाव होता है, बीजों का अच्छा एवं एक सामान अंकुरण होता है, राइजोबियम कल्चर द्वारा नत्रजन स्थरिकरण क्षमता के बढ़ने के साथ फसल का उत्पादन बढ़ता है।



कृशि आधारित उद्यमिता विकास में महिलाओं की अहम भूमिका- श्रीमती मीरा सिंघल

कृशि विज्ञान केन्द्र-कटिया, सीतापुर द्वारा अपने परिसर में अन्र्तराश्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर किसान मेला सह कृशि प्रदर्षनी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर ग्रामीण महिलाओं में उद्यमिता विकास विशय पर संगोश्ठी का आयोजन भी हुआ। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्रीमती मीरा सिंघल, समाजसेविका एवं पत्नी महाप्रबन्धक, दि सेकसरिया विसवाँ षुगर फैक्ट्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि ग्रामीण महिलाओं के सषक्तिकरण के लिए उनको षिक्षा के साथ साथ लघु उद्योग अपनाने के लिए भी प्रोत्साहित करने की आवष्यकता है। कृशि आधारित उद्यमिता विकास में महिलायें अहम भूमिका निभा सकती हैं। उन्होने उपस्थित महिलाओं का आह्वान करते हुए कहा कि महिलायें अपनी ताकत व कमजोरियों को पहचानें, अधिकारों के प्रति सचेत रहें व अपनी योग्यताओं पर विष्वास रखें तभी समाज हमें सम्मान देगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिश्ठ वैज्ञानिक सह अध्यक्ष कृशि विज्ञान केन्द्र डा0 आनन्द सिंह ने महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज समय आ गया है कि महिलाओं के नेतृत्व में कृशि व ग्राम्य विकास की नींव रखी जाए। कृशि हमेषा से श्रम की दृश्टि से महिला प्रधान रहा है, अब आवष्यकता इस बात की है कि तकनीकी ज्ञान व निर्णय लेने में भी महिलाएं अपनी भूमिका निभायें। भारतीय कृशि अनुसंधान परिशद, नई दिल्ली के मार्गदर्षन में कृशि विज्ञान केन्द्र निरन्तर इस दिषा में कार्य कर रहा है।

डा0 श्रीमती सौरभ ने कार्यक्रम में आये हुए अतिथियों व प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए ग्रामीण महिलाओं व किषोरियों के लिए कृशि विज्ञान केन्द्र द्वारा चलाये जा रहे प्रकल्पों एवं प्रषिक्षणों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुये कहा कि महिलाऐं स्वावलम्बन की दिषा में सिर्फ एक कदम आगे बढ़ायें, अपने घरों से निकलें बाकि कृशि विज्ञान केन्द्र उनकी योग्यता एवं कार्य कुषलतानुरुप कृषि आधारित उद्यमों जैसे केंचुआ खाद उत्पादन, एजोला उत्पादन, मखाना उत्पादन, नील हरित शैवाल उत्पादन, ट्राइकोडर्मा उत्पादन आदि अथवा अन्य उद्यम जैसे फल-सब्जी परिरक्षण, सिलाई-कढाई, कपडा रंगाई, प्रिंटिंग, रंगीन मछली उत्पादन, बकरी, मुर्गी, बतख पालन इत्यादि पर उनको प्रषिक्षित करने, उद्यम शुरु करवाने से लेकर बाजार उपलब्ध कराने तक सहयोग प्रदान करेगा। महिलाऐं अपनी योग्यताओं को पहचानें और सामने आ रहे अवसरों का लाभ उठायें। विसवाँ सामुदायिक केन्द्र की स्त्री रोग विषेषज्ञ एवं विषिष्ट अतिथि डा0 पूजा चोपडा ने ग्रामीण महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करते हुए कहा कि वे बीमारी के आरम्भ होते ही अस्पताल जायें, अक्सर बीमारी बहुत बढ जाने पर महिला की जान पर भी बन आती है। साफ-सफाई की महत्ता बताते हुए श्रीमती कुसुुम श्रीवास्तव ने घर आँगन के साथ गाँव व व्यक्तिगत सफाई के बारे में समझाया। श्रीमती किरन एवं नेहा महिला समाख्या, सीतापुर ने महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी दी। सम्मानित अतिथि श्रीमती मिथलेष, वार्डन, कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विद्यालय ने षिक्षा की महत्व पर प्रकाष डाला एवं विद्यालय में प्रवेष हेतु 21-30 मार्च तक आयोजित होने जा रहे कैम्प में अपनी बालिकाओं को लानें के लिए प्रोत्साहित किया।

राजीव गाँधी महिला विकास परियोजना के श्री परमानन्द कुषवाहा ने महिलाओं को समूह बनाकर उद्यम शुरू करने के लिए प्रेरित किया। महिला उद्यमी श्रीमती सरबरी ने उपस्थित महिलाओं को अपने चिप्स-पापड लघु उद्योग के बारे में बताया कि कैसे उसने 5 अन्य महिलाओं के साथ मिलकर थोडी पूंजी से अपना काम शुरु किया और सफलता प्राप्त की। किसान महिलाओं को श्री शैलेन्द्र सिंह ने फसल बीमा, स्वास्थ्य बीमा की जानकारी दी। केन्द्र के श्री सचिन प्रताप तोमर ने मृदा नमूना लेने की विधि व मृदा स्वास्थ्य कार्ड के बारे में बताया। प्रक्षेत्र प्रबन्धक डा0 योगेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि हमारा देष आदिकाल से ही महान नारी शक्तियों से आलोकित रहा है, आज भी देष में बहुत से क्षेत्रों का नेतृत्व सुयोग्य महिलाओं द्वारा किया जा रहा है जिस पर हम गर्वान्वित महसूस करते हैं। कार्यक्रम में केन्द्र द्वारा प्रषिक्षित किषोरियों एवं महिलाओं ने भी अपने अनुभव साझा किये। अनुराधा, गरिमा, अमिता, गुडिया, अनीता, रेखा, रोषनी आदि ने कार्यक्रम को सफल बनाने में विषेष योगदान दिया। कार्यक्रम में ग्राम जसवन्तनगर, परागपुर, मझिगवाँ, बन्नी खरैला, घुरीपुर, इस्बापुर, नकारा, शुक्लापुर, कटिया, पडरिया, ओरीपुर की महिलाओं ने हिस्सा लिया।



संतुलित उर्वरक उपयोग एवं मृदा परीक्षण पर एक संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम

कृषि और ग्रामीण विकास जैसे एक ही उद्देश्य पर कार्य कर रहे कृषि विज्ञानं केन्द्र, कटिया सीतापुर एवं पारादीप फास्फेट लिमटेड ने बुधवार को बिसवां विकास खण्ड के मानपुर बाजार में संतुलित उर्वरक उपयोग एवं मृदा परीक्षण पर एक संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया कार्यक्रम में सभी का स्वागत करते हुए केन्द्र के प्रसार वैज्ञानिक शैलेन्द्र सिंह ने किसान भाइयो से कहा की उन्हें केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा कृषि विकाश के क्षेत्र में चलायी जा रही सारी योजनाओं में बढ़-चढ़ कर भागीदारी लेनी चाहिए और प्रचार प्रसार में सहायक समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, रेडिओ, टेलीवीजन, कृषक गोष्ठी, प्रशिक्षण, कार्यशाला आदि को नियमित रूप से देखना और सुनना चाहिए जिससे हम नई तकनीकों और योजनाओं से ज्यादा से ज्यादा जुड़ पाएंगे। केन्द्र के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह ने जनपद में सफलता की ओर अग्रसर मखाना की खेती के बारे में विस्तार से चर्चा की तथा उन सभी किसानों से इसे अपनाने का आवाहन किया जहाँ पर तालाबों, झीलों और पानी की सुबिधा हो साथ ही साथ उन्होंने पशुओं के गर्भाधान पर बरती जाने वाली जरूरतों पर कृषको के प्रश्नों का समाधान भी बताया

कार्यक्रम में पारादीप फास्फेट लिमटेड से बी. बी. राय और वि. के. सिंह ने मृदा स्वास्थ व संतुलित उर्वरक पर कहा कि मिट्टी की उर्वरता स्थिति में लगातार गिरावट सबसे गंभीर समस्याओं में एक मानी जाती है। किसान अधिकतर नाइट्रोजन युक्त उर्वरक (ज्यादातर यूरिया) या नाइट्रोजन युक्त और मिश्रित जटिल उर्वरक (ज्यादातर यूरिया या डीएपी) का उपयोग करते हैं तथा पोटाश और अन्य अभाव वाले पोषकों के उपयोग को नजर अंदाज कर देते हैं। दूसरी तरफ, बहुपोषक तत्व® की कमियां भी अधिकतर मिट्टियों में पहले ही उभर आई हैं तथा विस्तारित हो चुकी हैं। विभिन्न परियोजनाओं के तहत देश के विभिन्न हिस्सों में किए गए मिट्टी यानि मृदा विश्लेषण से कम से कम 6 पोषक तत्वों- नाइट्रोजन (एन), फास्फोरस (पी), पोटाश (के), जिंक (जेड.एन) और बोरॉन (बी) की व्यापक कमी प्रदर्शित हुई।

केन्द्र के प्रक्षेत्र प्रबंधक डॉ योगेन्द्र प्रताप ने कहा कि फसल की मांग से अधिक उपयोग में लाया गया नाइट्रोजन वाष्पीकरण और निक्षालन के जरिए खत्म हो जाता है। सलाह से अधिक मात्रा में यूरिया का उपयोग फसल के रसीलेपन को बढ़ा देता है जिससे पौधे बीमारियों और कीट संक्रमण के शिकार हो सकते हैं। यूरिया का असंतुलित उपयोग नाइट्रोजन की कुशलता को घटा देता है जिससे उत्पादन की लागत में वृद्धि हो जाती है और शुद्ध मुनाफे में कमी आती है।

कार्यक्रम का समापन व धन्यबाद ज्ञापन सचिन प्रताप तोमर ने किया, कार्क्रम में १०० से ज्यादा कृषको ने प्रतिभाग किया।



जैव संरक्षण का कृषि के क्षे़़त्र में महत्व के बारे जागरुकता की पहल या खेत के अवशेष व अपशिष्ट पदार्थ के माध्यम से भूमि में सुधार की पहल

पर्यावरण एवं वन मत्रालय, भारत सरकार, भारतीय पर्यावरण समिति, नई दिल्ली एवं राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान के तहत जैव संरक्षण के अन्तर्गत खेत के अवशेष व अपशिष्ट पदार्थ के माध्यम से भूमि में सुधार की पहल की गयी है। जिसमें किसानों को खेत के अवशेष से कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया सीतापुर द्वारा कृषक गोष्ठी आयोजन किया गया। जिसमें केन्द्र के विभागाध्यक्ष डाॅ0 आनन्द सिंह ने बताया कि अक्टूबर से नवबंर माह में रबि की फसल की तैयारी के लिये ,खेत में पडे पराली एवं पैरा को जला देता है जिससे वातावरण में प्रदूषण होता है। और धुधं उत्पन्न होता है, इन धुधं में नाइट्रोजन आक्साइड,सल्फर डाइ आक्साइड,कार्बन मोनो आक्साइड और एस्बेस्टास तत्वों और गैसो के रासायनिक कण होते है जिनसे हमें कई तरह की बीमारिया हो सकती हैं । खेत के अवशेष को कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट या खेत किनारे खडडे बनाकर फसल अवशेष, खरपतवार को गडडों में दबाकर किसान भाई उससे जैविक खाद बना कर खेती में रासायनिक उर्वरक की मान्ना कम कर सकते है, एवं भूमि में कार्बनिक पदार्थ की स्थिति सुधार सकते हैं ।

केन्द्र के पशुपालन वैज्ञानिक ने डाॅ0 आनन्द सिंह (द्वितीय) ने पशुओं से प्राप्त गोबर व खेत के अवशेष व अपशिष्ट पदार्थ से वर्मी कम्पोस्ट बना कर पुर्नचक्रण प्रक्रिया द्वारा जहा हम मृदा सुधार कर सकते हैं साथ ही पर्यावरण को प्रदुषण से बचा सकते है। केन्द्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डाॅ0 डी0एस0 श्रीवास्तव ने कम्पोस्ट व वर्मी कम्पोस्ट का खेती में उपयोग कर भूमि की उत्पादकता में सुधार कर सकते हैं एवं कृषि निवेश कम कर सकते हैं । केन्द्र के प्रसार वैज्ञानिक शैलेन्द्र सिंह ने बताया सरकार की तरफ से खेत के अवशेष के जलाने पर प्रतिबंध है । किसान भाई पशुओं को सूखे चारे की कमी को देखते हुये भी नहीं जलाना चाहिए । डाॅ0 श्रीमती सौरभ ने बताया कि वर्मी कम्पोस्टींग करते समय निकला हुआ तरल पदार्थ को वर्मीवाश कहते है जिसका प्रयोग खडी फसल पर छिडकाव रुप कर लाभ प्राप्त कर सकते है।

कार्यक्रम का संचालन डाॅ. वाई.पी. सिंह ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन श्री सचिन प्रताप तोमर ने किया।



अरहर की खेती में समेकित प्रबंधन अति आवश्यक : डाॅ. सिंह

आई.सी.ए.आर.-अटारी, कानपुर द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजनान्तर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र-द्वितीय कटिया, सीतापुर द्वारा आयोजित सामुहिक दलहन विकास योजना के चयनित कृषकों का एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम कृषि विज्ञान केन्द्र-द्वितीय कटिया में आयोजित किया गया। प्रतिभागी कृषकों को सम्बोधित करतें हुए कृषि विज्ञान केन्द्र, कटिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डाॅ. आनन्द सिंह ने कहा कि खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में अरहर का महत्वपूर्ण स्थान है एवं अरहर की बढती हुई मांग को देखते हुए अरहर की वैज्ञानिक खेती बहुत ही लाभप्रद है। डाॅ. सिंह ने बताया कि दलहन में बदलते तापमान के कारण फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। ऐसे में यदि किसान एकीकृत फसल प्रबन्धन तकनीकि को अपनाकर कृषि करें तो उन्हें अधिक उत्पादन प्राप्त होगा। उन्ह¨ने किसानों को मृदा स्वास्थ्य, एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन, एकीकृत नाशी जीव प्रबन्धन एवं एकीकृत फसल प्रबन्धन पर जागरूक किया।

केन्द्र के पादप रक्षा वैज्ञानिक डाॅ. डी.एस. श्रीवास्तव ने अरहर के प्रमुख कीट एवं रोग पर विस्तृत जानकारी देते हुए आई.पी.एम. विधियों के प्रयोग की सलाह दी। तथा अरहर में सम्भावित पत्ती लपेटक कीट हेतु नीम का तेल 2 मिली0 प्रति लीटर पानी एवं अरहर के उकठा रोग के प्रबंधन हेतु ट्राइकोडर्मा द्वारा उपचारित केचुआ खाद का प्रयोग करने की सलाह दी। केन्द के फार्म प्रबंधक डाॅ. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने अवांछनीय पौधों को उखाडने तथा खेत एवं खेत की मेंडों को पुर्णतः खरपतवार रहित रखने की सलाह दी। केन्द्र के प्रसार वैज्ञानिक शैलेन्द्र सिंह ने कहा कि दलहन उत्पादन में आ रही रूकावटों के निस्तारण हेतु केन्द्र द्वारा एक-एक गांव के कृषकों का समूह में चयन कर सामूहिक प्रदर्शन कराया जा रहा है।

उपस्थित कृषकों मे बाबूराम, प्यारेलाल, रमेश, अजय, विजय कुमार ने वैज्ञानिकों से खरीफ की अन्य फसलों में होने वाली समस्यों पर परिचर्चा की। कार्यक्रम का संचालन डाॅ.(श्रीमति) सौरभ एवं श्री एस.पी. तौमर ने किया।



जनपद सीतापुर सब्जी उत्पादन क्षेत्र में प्रमुख रूप से अग्रणी रहा हैं।

  • सब्जियों की उत्पदकता में सूत्रकृमि प्रमुख बाधक।
  • किसानों को नहीं है गुप्त शत्रु - सूत्रकृमि की जानकारी।
  • 90 फीसदीं फसलों में ढाल चुके है डेरा।
  • करैला, लौकी, परवल, भिण्डी, तोरई, कुमड़ा, बैगन, भंयकर चपेट में।

  • जनपद सीतापुर सब्जी उत्पादन क्षेत्र में प्रमुख रूप से अग्रणी रहा हैं। पिछले कुछ वषों में सब्जी एंव बागवानी के क्षेत्र में जनपद के किसानो ने अधिक अभिरूचि दिखाई हैं। फलस्वरूप अधिक लाभ भी मिला। किन्तु एक ही तरह की फसल को बार-बार लगाने से कीट बीमारियों एंव विशेष तौर पर सूत्रकृमियों को फलने फूलने को बहुत मौका मिला। परिणाम स्वरूप अब पैदावार में कमी एंव लागत में बढौŸारी होने लगी है।

    कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया ने क्षेत्रीय परियोजना निदेशालय, भा0कृ0अनु0प0-कृषि तकनीकी अनुप्रयोग संस्थान कानपुर, के माध्यम से अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना- सूत्रकृमि को अवगत कराकर निरीक्षण एवं निराकरण हेतु अनुरोध किया। इसी क्रम में चन्द्रशेखर आजाद कृषि एंव प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कीट विज्ञान के प्रोफेसर डा0 कृपा शंकर एंव डा0 श्रीमती कुसुम द्विवेदी ने कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डा0 डी0एस0 श्रीवास्तव के साथ मिलकर जनपद सीतापुर के वि0ख0 महौली, ऐलिया, लहरपुर एंव बेहटा क्षेत्र का दौरा किया। सर्वेक्षण के दौरान वि0ख0 महौली के गांव घरकातारा, पिपरावां, सरबतपुर, मस्जिद बाजार, अल्लीपुर के लौकी करेला, भिण्डी बेगन, तरोई, कुमडा, अडवी, परवल में सूत्रकृमियों का प्रोकोप अत्यधिक हानिकारक अवस्था में पाया गया। तथा ऐलिया में धान व लहरपुर एंव बेहटा के केले की फसल में सूत्रकृमियों ने अपना जटिल चक्र स्थापित कर 60 से 70 फीसदी नुकसान को अन्जाम दें चुके है।

    ग्राम घरकातारा के किसान महेन्द्र कुमार ने बताया कि हमे पहले सूत्रकृमियों के बारे में जानकारी बिल्कुल नहीं थी जब पौधा पीला दिखाई पड़ता था तो हम यूरिया, डाई, का प्रयोग कर दिया करते थे किन्तु लाभ नहीं मिला करता था। महोली के मस्जिद बाजार के किसान सुरेन्द्र कुमार बताते है कि हमने लौकी लगाई थी किन्तु बहुत उपाय करने पर भी पैदावार नहीं हुई। अन्त में फसल उखाडनी पड़ी। इसी गांव के राजेन्द्र प्रसाद ने भिण्डी लगाई पर जड़ में गांठ(सूत्रकृमि) के चलते उनकी भिण्डी पैदा नहीं हुई। अल्लीपुर के किसान विन¨द कुमार ने बताया कि हमारे क्षेत्र मे लगभग 1000 एकण मे टमाटर लगाया जाता है लेकिन समस्याए दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं।

    गांव पिपरावां के किसान गुरूप्रसाद बताते है कि हमने पहली बार परवल लगाया लेकिन फला नहीं। जब कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया के वैज्ञानिकों से सम्पर्क किया तो जड़ में गांठ के बारे में पता चला कि यह भी एक बीमारी है। लहरपुर के किसान मो0 सलमान बताते है कि पिछले वर्ष हमने जबसे केला लगाया पौधा ठीक से विकास ही नहीं कर रहा। हमने लाखो की खाद एंव दवाइयां डाल दी पर फायदा नहीं हुआ। जड़ मंे गाठ व काली जड़े वैज्ञानिकों द्वारा पता चला तो हम हैरान हो गये।

    बेहटा के भवानीपुर के किसान रामगोपाल शर्मा बताते है कि मेरे उपर काफी कर्ज हैै। केले की खेती हमने अधिक आय हेतु शुरू की थी। किन्तु सूत्रकृमि के प्रकोप ने हमारे अरमानों पर पानी फेर दिया।

    सर्वेक्षण कर रहे वैज्ञानिकों ने सूत्रकृमि से बचाव एंव निदान हेतु फसल चक्र अपनाने की सलाह दी। तथा खरीफ में तिल, रबी में सरसों, एंव जायद में चारे वाली फसल एक बार लेने की सलाह दी। सब्जियों में गोभी, प्याज, लहसुन, लेने से भी प्रकोप कम होगा। गर्मियों में गहरी दो-तीन जोताई कर खेतों को खुला छोड़ दें तथा मेड़ों को चैेड़ी कर खेतों में 10 दिन तक पानी भरा रहने दें। खड़ी फसल में नियंत्रण हेतु 250 कि0ग्राम नीम की खली एंव गोबर की खाद में 3 से 4 किलो ग्राम जैविक कीटनाशी पेसिलोमाइसीज प्रति एकड़ प्रयोग करे। सर्वेक्षण के दौरान रोग ग्रस्त खेतों से सूत्रकृमि प्रभावित जड़ों एंव मृदा नमूनो के 12 सैम्पल एकत्रित कर विभिन्न सूत्रकृमियों की प्रजातियों की पहचान करने हेतु प्रयोगशाला भेजा गया है।



    किसानों को वितरित किये गये टमाटर की रोगरोधी किस्मों के बीज।

  • किसानों को वितरित किये गये टमाटर की रोगरोधी किस्मों के बीज।
  • कम लागत में किसानो को मिलेगा अधिक उत्पादन।
  • पेस्टीसाइड प्रयोग में आयेगी कमी, बढ़ेगा जैव संतुलन।
  • परागण में वृद्धि से बढ़ेगा उत्पादन।

  • जनपद सीतापुर के महोली विकास खण्ड के कृषक टमाटर उत्पादन के क्षेत्र में प्रमुख रूप से अग्रणी रहे हैं। लगभग 1000 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में किसान टमाटर उत्पादन में रूचि रखते हैं। जिसमें प्रमुख रूप से ग्राम मल्लपुर, नियाजपुर, अल्लीपुर, घरकातारा, पिपरावाॅ, सरबतपुर, मस्जिद बाजार, थवई, अमृतपुर, राजपुर, चिरागअली, महमूदपुर एवं बंजरिया के कृषक टमाटर को अपनी प्रमुख फसल मानते हैं। क्षेत्र में टमाटर में अधिक मुनाफा देखते हुये अन्य किसानों ने भी धीरे-धीरे इसे अपनाना शुरू कर दिया, फलस्वरूप टमाटर उत्पादन के क्षेत्र में विकास खण्ड महोली प्रमुखता से जाने जाना लगा, किन्तु जलवायु परिवर्तन के कारण धीरे-धीरे फसल में रोग एवं व्याधियों की समस्या बढ़ने से कीटनाशकों का अन्धाधुंध प्रयोग भी शुरू हुआ, परिणामस्वरूप लागत बढ़ने लगी एवं मुनाफा कम होने लगा।

    कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया, सीतापुर के विभागाध्यक्ष डाॅ0 आनन्द सिंह ने बताया कि जनपद में टमाटर किसानों की समस्या को देखते हुये के0वी0के0 कटिया ने राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबन्धन केन्द्र पूसा नई दिल्ली के साथ मिलकर परियोजना तैयार कर काम शुरू कर दिया है। टमाटर की फसल में बदलते मौसम के दृष्टिगत् झुलसा, उकठा एवं विषाणु जनित रोगों से फसल को भारी नुकसान उठाना पड़ता था। फलस्वरूप फसल पर नाना प्रकार की पीड़कनाशियों का छिड़काव करना पड़ता था, जिससे लागत में बढ़ोत्तरी एवं मित्र जीवों की संख्या में गिरावट तथा पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता था। केन्द्र ने इन समस्यों से निपटने हेतु भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बैंगलूरू द्वारा विकसित झुलसा, उकठा एवं विषाणु रोगरोधी किस्में अर्का सम्राट एवं अर्का रक्षक मंगाकर चयनित कृषकों के मध्य प्रदर्शन हेतु वितरित किया है। यह प्रजातियाॅ जहाॅ एक ओर रोगों से लड़ने में सक्षम हैं, वहीं दूसरी ओर पैदावार की दृष्टिकोण से अन्य प्रजातियों से उत्तम हैं।

    केन्द्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डाॅ0 डी0एस0 श्रीवास्तव ने बताया कि रोगरोधी प्रजातियों के चयन से जहाॅ एक ओर बीमारियों का प्रकोप कम होगा, वहीं दूसरी ओर पेस्टीसाइडस् का भी कम प्रयोग होगा। फलस्वरूप खेत में जहर कम प्रयोग करने से मित्र कीटो की संख्या में वृद्धि होगी तथा किसानों की लागत में भी कमी आयेगी। डाॅ0 श्रीवास्तव ने पारिस्थितिकी अभियांत्रिकी अन्तर्गत कीट रोगों से लड़ने हेतु किसानों से मेड़ो पर पुष्पीय पौधों को लगाने हेतु अनुरोध किया। केन्द्र के प्रयोगशाला सहायक सचिन प्रताप तोमर ने कहा कि एकल फसल लगाने से एवं फसल चक्र न अपनाने से खेतों में पोषक तत्वों की भारी कमी हो जाती है एवं मृदा स्वास्थ्य गिर जाता है। ऐसे में किसानों को हरी खाद, गोबर की खाद, केचुआ खाद, के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य बढ़ाने हेतु प्रशिक्षित किया जा रहा है।

    गृह वैज्ञानिका डा0 श्रीमती सौरभ ने किसानों को पोषक तत्व प्रबन्धन, लागत, लाभ अनुपात पर किसानों को विस्तार से प्रशिक्षित किया।

    कार्यक्रम में प्रमुख रूप से कृषक इन्द्रजीत, विनोद कुमार, रामनरेश, महेश प्रसाद, राजेन्द्र प्रसाद, संतोष कुमार, ओमप्रकाश, सुरेन्द्र, राधेश्याम, सुशील, कौशल, अखिलेश, महिपाल, बृजकिशोर, चरन्जू, अशोक, राजेश इत्यादि समेत चयनित 20 किसानों को रोगरोधी किस्मों के बीज वितरित किये गये एवं 50 से अधिक किसानों ने भाग लिया।



    कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया ने 7 कृषि प्रतिभाओं का किया सम्मान।

  • कृषि में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कृषक हुये सम्मानित
  • किसान दिवस पर किसान सम्मान समारोह आयोजित।

  • विज्ञान एवं किसान साप्ताहिक अभियान 23-29 दिसम्बर 2016 का शुभारम्भ किसान दिवस के शुभ अवसर पर कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया प्रांगण में किया गया, उद्घाटन डाॅ0 आनन्द सिंह अध्यक्ष द्वारा किया गया। डाॅ0 सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारे अन्नदाता ही हमारी जैव विविधताओं के रक्षक हैं। प्रकृति ने जैव विविधता के रूप में जीविकोपार्जन एवं धन अर्जन हेतु जो अमूल्य उपहार दे रखे हैं। उनको सजोकर एवं उनका संवर्धन कर एक-दूसरे के लिए आय का माध्यम बनाने में कृषकों की अभूतपूर्ण भूमिका है। प्राकृतिक संशाधनों का संरक्षण एवं उनके ज्ञान का आदान-प्रदान करने से कृषि की सभी चुनौतियों को पूरा किया जा सकता है।

    केन्द्र के पशुपालन वैज्ञानिक डाॅ0 आनन्द सिंह ने कहा कि कृषि एवं पशुपालन का रिश्ता बहुत अनमोल है। हम पशुओं के संरक्षण, संवर्धन एवं प्रसार के बगैर कृषि में वांछिम लाभ प्राप्त नहीं कर सकते हैं। आज हर एक कृषक को पशुपालन से जोड़ना होगा। तभी हम टिकाऊ उत्पादन पा सकेंगे। केन्द्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डाॅ0 डी0एस0 श्रीवास्तव ने कहा कि मित्र जीवों का संरक्षण एवं पर्यावरणीय ज्ञान का समुचित प्रचार एवं प्रसार कर कीट व्याधियों को स्वतः ही नियंत्रित किया जा सकता है। हमंे रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों पर निर्भरता धीरे-धीरे खत्म कर जैव कीटनाशकों एवं जैव उर्वरकों पर आत्मनिर्भरता बढ़ानी होगी।

    प्रसार वैज्ञानिक एस0के0 सिंह ने कहा कि किसानों को अधिकाधिक ज्ञान बढ़ाने हेतु आज इण्टरनेट बहुत सशक्त माध्यम के रूप में उभरा है। जरूरत है किसानों को साक्षर बनाने की। गृह वैज्ञानिका डाॅ0 सौरभ ने कृषि में महिलाओं की भूमिका को प्रमुख मानते हुये कहा कि बिना महिलाओं को प्रशिक्षित किये समुचित विकास नहीं कर सकते। हमें घर-घर में रोजगार हेतु महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। कार्यक्रम सहायक एस0पी0 तोमर ने मृदा स्वास्थ्य हेतु हरी खाद, केचुआ खाद, सी0पी0पी0, एजोला एवं नीलहरित शैवाल प्रयोग पर जोर दिया।

    इस अवसर पर कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में 7 किसानों को पुरस्कृत किया गया, जिनमें चारा उत्पादन के क्षेत्र में प्यारे लाल, मखाना उत्पादन में सुरेश कश्यप, बीज उत्पादन में रमेश चन्द्र, कृषि डाकघर योजना मंे विजय शंकर, नील गाय प्रबन्धन में सुखदेव सिंह, आम की प्रजाति संरक्षण एवं विकास में मो0 मुजीब अहमद, स्वयं सहायता समूह में सुशीला देवी ने उत्कृष्ट कार्य किया है। कार्यक्रम में 50 से अधिक कृषकों ने भाग लिया संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन डाॅ0 वाई0पी0 सिंह ने किया।



    Technology week / rabi campaign organized by kvk-ii, sitapur, u.p.

    Krishi Vigyan Kendra-II, Katia, Sitapur organized Technology Week/ Rabi Compaign from 02-8 December 2016 in 8 villages of 2 Blocks of sitapur by involving NABARD, Line Department, Gaon Connection and School, colleges. Exposure were made to farming community through awareness camp, film shows, exhibitions, putting up stalls, Nukkad Natak, Vad Vivad Sangosthi. Extension literature; display systems like display boards, live demonstrations, sample trays, products. The programme was inaugurated by District Magistrate, Sitapur.

    During the programme, a series of awareness camp organized on various schemes and topics viz. Pradhanmantri Fasal Beema Yojna, Soil Health Card, Pradhanmantri Krishi Sichayi Yojna, Per drop- More Crop, Integrated Agriculture Marketing Scheme, Startup and Standup India, Small Farmers Agri-business Consortium, Financial Literacy for smooth Agri-operations, Seed Production programme, Integrated Pest Management, Safe Handling of Pesticides, Nematode Awareness compaign, Animal Breed Improvement Programme, Animal Vaccination/ Animal Health Camp, Animal Parasite Control, Green fodder production, Post Harvest Management and Processing and Swachh Bharat Mission.

    At the end of the day i.e on 08 December 2016, a Kisan Mela organized at Maholi Block of Sitapur where District Magistrate, Sitapur, Chief Development Officer, District Development Officer, District Horticulture Officer, District Cane Officer and district Extension officers addressed the farmers and farm women on challenging issues in agriculture. Appox. 2200 farmers were benefitted during this technology week/ Rabi campaign. Dr Anand Singh, Sr.Scientist-cum-Head, KVK-II, Sitapur proposed vote of thanks.